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प्रकाशक्का वकतव्य
इस खंडमें माताजीके उन वार्त्तालापोंको भंगृहीत किया गया है जो सन् १९५७ के प्रारंभसे नवंबर, १९५८ के अंततक उनकी ''बुधवारकी कक्षाओं'' मे आश्रमके विद्यार्थियों, अध्यापकों तथा साधकोंके माथ हुए थे । खेलके मैदानोंमें दिये गये वार्त्तालपोंमें ये अंतिम वार्त्तालाप थे । साधारण तौर- पर माताजी श्रीअरविंदके किसी ग्रंथके अपने फ्रेंच अनुवादका मुछ अंश पढा करती थीं । सन् १९५७ के जनवरी महीनेसे अप्रैलतक ''थॉट्म एरंड ग्लिम्प्सेज'' (विचार और झांकियां), अप्रैलसे अक्तूबरतक ''सुप्रामेंटल मैनिफेस्टेशन अपोंन अर्थ'' (पृथ्वीपर अतिमानसिक अभिव्यक्ति) और अक्तूबर, १९५७ से नवंबर १९५८ तक ''द लाइफ डिवाइन'' (दिव्य जीवन) ग्रंथके अंतिम छ: अध्यायसे माताजी कुछ अंश पढा करती थीं ! उन अंशोंको पढनेके बाद वह या तो पढे हुए .अंशकी व्याख्या करती थीं या उसी पड़े विषयपर या दूसरे विषयोंपर पूछे गयें प्रश्नोंका उत्तर दिया करती थीं ।
वार्त्तालाप फ्रेंच भाषामें दिये जाते थे और उन्हें 'टेपरेकार्ड' कर लिया जाता था । इनमेंसे अधिकांश वार्त्तालापोंमे दिये गये मु_ल पाठों तथा उनके अनुवादोंको सबसे पहले त्रैमासिक ''बुलेटिन ऑफ फिजीकल एजुकेशन'' (बादमें ''बुलेटिन ऑफ श्रीअरविंदो इंटरनेशनल सेंटर ऑफ एजुकेशन'') मे फरवरी १९५७ और नवंबर १९५८ के बीच, अगस्त १९६१ मे तथा फरवरीसे अगस्त १९६३ तक प्रकाशित किया गया था । फिर १९५७ के वार्त्तालापोंको पूरे म्ल फ्रेंच पाठका संस्करण सर्वप्रथम १९६१ मे ''आंत्रतियें १९५७" के शीर्षकके साथ प्रकाशित हुआ । ''आंत्रतियें १९५८" सन् १९७२ मे छपा । इन सभी वार्त्तालापोंको एक नया अंग्रेजी अनुवाद १९७३ मे ''क्वेश्चन्स गड्ड आन्सर्स १९५७-५८'' के नामसे पुस्तकाकार प्रकाशित हुआ । इसी १९७३ के संस्करणको दुबारा सुधारकर ''कलैक्टेड वर्क्स ऑफ द मरद (सेटिनरी गिडशन) '' के खंड ९ मे प्रकाशित किया गया है ।
हिंदीमें प्रकाशित यह ' 'श्रीमातृवाणी'', खंड़ ९, "प्रशन और उत्तर १९५७- ५८'' इसी अंगरेजी ग्रंथका अनुवाद है ।
आर्ष वाणीका अनुवाद करना एक असंभव कार्य है । मूक भाषा न जानने वालोंके लिये ''श्रीमातृवाणी''का अनुवाद 'श्रीअरविंद अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा केंद्र'का हिंदी विभाग कर रहा है ।
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